Monday, April 30, 2007

धर्म की राजनीति

आदमी

कभी राम के नाम पे जीता था आदमी, आज राम के नाम पे मरता है आदमी,
ये ख़ून कि नदियाँ जो बह रही हैं हर तरफ, उसमे राम नाम की नैया को खेता है आदमी।
एय इंसा तेरी इंसानियत को ये क्या है हो गया,
मासूमों को मार के तू करेगा मंदिर खड़ा,
नदानों के लाश पे डालेगा इसकी नीव,
अब्लाओं के ख़ून से जलायेगा इसके दीप,
मासूमों की चीत्कार से बजेंगी इसकी घंटियाँ,
हवान्कुंद में गिरेंगी सुहागनो कि बिंदियाँ,
उन बंदियों कि राख से करेगा जब तू तिलक,
इन्सान तो क्या उस राम की भी जायेंगी आंखें छलक,
तो क्यों उस राम कि आँखें छाल्काता है आदमी,
क्यों आदमी पे कहर बर्पता है आदमी,
और जब रहता है राम हर इन्सान में, हर दिल में,
तो ना जाने क्यों मंदिर बनवाता है आदमी,
ना जाने क्यों मंदिर बनवाता है आदमी,
ना जाने क्यों मंदिर बनवाता है आदमी !!!
- आशुतोष

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