Thursday, May 22, 2014

मैं

मैं
ना मैं दरिया हूँ, ना सागर, मैं बस दोनों का जज़्बा हूँ,
कभी हैरान हूँ खुद पे, कभी मैं सब समझता हूँ |

मुद्दत बाद इस दिल में कोई तूफान आया है,
कि थोड़ा तुम ठहर जाओ, और थोड़ा मैं ठहरता हूँ |

मेरी दुश्वारिओं को मैं कभी भी कह नहीं पाया,
बिना बोले समझ जाओ, कि जैसे मैं समझता हूँ |